स्वर्ग के स्वप्न देखती है निद्रारत सुंदरी
हँसती हैं आँखें उसकी पलकों में छिपी
गुलाबी ओंठ मुस्काते हैं मीठी मुस्कान
और थरथराने लगते है गहरी साँसों से
रक्तिम कपोल हैं लज्जा के चुंबन से
हंसिनी का भास सुराहीदार गर्दन से
स्पर्श करता है प्रणय अदृश्य ओठों से
ओंठों ही ओंठों में गुनगुनाती है कैसे
जानना चाहता हूँ पर डर है जैसे
विस्मृत है देहभान, देहों के मेल से
सिसकती है वह कसमसा कसमसाकर
संगमरमरी हाथ हैं धवल गुंबदों पर
हिंडोले में झूलती है अब वह निद्रारानी के
जैसे कोई फरिश्ता खोया हो विश्रांति में
खोई रहो स्वप्नों में निद्रालीन इसी तरह
स्वर्ग के नियंत्रण में है भावनाओं का बहर
अदृश्य लोक में छिपा राज दिव्य स्वप्न का
मीठी मुस्कान, तुम्हारी कसमसाहट का